Monday, June 28, 2010

गुलजाना प्रकरण - अब हिंदी में

गुलजाना – एक गाँव की वृद्धि एवं विकास यात्रा

“ यह लेखन वास्तविक सन्दर्भों, ऐतहासिक तथ्यों, व्यक्तिगत अनुभवों, श्रुतिओं, पारिवारिक स्वीकारोक्तियों/विवरणों, एवं ग्राम प्रचलित किम्वदंतियों का अविच्छिन्न यौगिक मिश्रण है| इसमें लेखक का कार्य निष्पक्षता पूर्वक आधे-अधूरे तथ्यों को जोड़कर सामंजस्य स्थापित करना व रुचिकर पूर्णता प्रदान कर पाठकों तक पहुँचाना मात्र भर है| किसी व्यक्ति विशेष, परिवार, या पारिवारिक समुदाय की निंदा, अवहेलना या प्रशंशा करना लेखक का उद्धेश्य कतई नहीं है| अगर प्रसंगवश ऐसा प्रतीत होता है तो पारिवारिक स्वीकारोक्तियों के आलोक में लेखक इसके लिए उत्तरदायी नहीं है| ”

भूमिका

1. सामान्यतः यह देखा जाता है कि गाँवों में ग्राम वासियों के बसने का समेकित एवं परिपूर्ण रिकॉर्ड रखने तथा इतिहास संजोने कि कोई भी रीति या परंपरा नहीं है| कभी-कभी तो ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है कि कुछ लोगों को अपने निकटतम पूर्वजों (प्रपितामह आदि) के नाम तथा अपने उद्गम स्थान अदि का भी पता नहीं होता| मैं इसी चिंतन में डूबा था कि मेरी अंतरात्मा ने मुझे झकझोरा कि अब समय आ गया है कि मैं गुलजाना ग्रामवासियों का रिकॉर्ड तैयार करूँ जिसमें किस परिवार के मुखिया (परम पुरातन पुरुष) का, किस गाँव या स्थान से, किस कारण से और किस परिस्थिति में यहाँ पदार्पण हुआ और तदुपरांत उनकी वंशावली किस तरह विकसित हुई तथा गुलजाना के उत्थान में उनका क्या योगदान रहा, इत्यादि तथ्यों का पूरा-पूरा विवरण समाहित कर सकूँ और आज के इस सूचना-सहयोगी दुनिया (IT Savvy world) में इसे वेब साईट पर प्रकाशित कर दूं ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ बिना किसी की मदद के गुलजाना ग्राम के भूत एवं वर्तमान के बारे में न केवल पूरी जानकारी रखें बल्कि ग्रामवासियों को भी कुछ बता सके| यह बहुत सुखद अनुभूति का विषय है की हमारे समकालीन और हमारी संततियां मेट्रो की सीमा फांद कर विदेशों में कार्यरत है| मेरा यह प्रयास खासकर इनकी और इनकी संतानों के लिए तब–तब काफी मददगार साबित होगा जब-जब उनका रुख गुलजाना की तरफ मुखातिब होगा या जब भी वे अपनी माटी की गंध लेना चाहेंगे| गूगल की मदद से गुलजाना का एक नक्शा भी इसके साथ वेब साईट पर प्रकाशित कर रहा हूँ जिसमे गाँव से सटे कुछ स्थानों के नाम के साथ-साथ कुछ घरों को भी दिखा रहा हूँ ताकि हरेक आदमी को अपना घर ढूंढने में सहुलि़त हो सके|

भौगोलिक स्थिति

2. गुलजाना ग्राम भौगोलिक दृष्टि से इस धरा पर 24.57’43” डिग्री N अक्षांश तथा 84.54’09” डिग्री E देशांतर पर अवस्थित है| समुद्र तल (Mean sea level) से इसकी ऊंचाई 92 मीटर है| जिला मुख्यालय गया शहर से 32 कि.मी उत्तर–पश्चिम दिशा में, प्रखंड एवं अनुमंडल शहर टिकारी से 6.5 कि.मी पूरब तथा बिहार प्रान्त की राजधानी पटना से 85 कि.मी. दक्षिण, पटना – गया रेलवे लाइन पर बेलागंज रेलवे स्टेशन से 8 कि.मी पश्चिम, बेलागंज – टिकारी रोड पर अवस्थित है|


चौहद्दी
3. गुलजाना उत्तर मे ग्राम भवनपुर, पूरब में ग्राम सिन्दानी तथा ग्राम बेलाढ़ी, दक्षिण में ग्राम मुस्सी और ग्राम पूरा एवं पश्चिम में ग्राम अलालपुर से घिरा है| गुलजाना को, सटे पूरब से बुढ़नदी तथा दक्षिण और पश्चिम से दरधा नदी अपने बाहुपाश में आलिंगित किये है जो एक दैविक वरदान ही है| इतना ही नहीं, गुलजाना को सटे उत्तर-पूरब से पश्चिम की तरफ बेलागंज-टिकारी सड़क का प्राकृतिक वरदान भी प्राप्त है| ऐसा है हमारा सुन्दर, सुरम्य, मनोरम एवं यातायात सुलभ ग्राम गुलजाना|

प्रशासनिक नियंत्रण

4. गुलजाना का प्रशासनिक नियंत्रण गया जिला, टिकारी अनुमंडल (Sub Division), प्रखंड एवं थाना तथा पूरा पंचायत और अर्क ढिबरिया डाक घर के अधीन आता है| गुलजाना का सर्वे (Cadastral Map) संख्या 124 है तथा राजस्व हलका सं 5 है|अतः गुलजाना एक स्वतंत्र राजस्व ग्राम है| वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव के अनुसार गुलजाना टिकारी विधानसभा क्षेत्र सं 231 के अंतर्गत बूथ सं 253 में आता है|कुल मतदाताओं की संख्या 649, भूमिहार मतदाताओं की सं 335,कुल गृहों की सं 163 तथा भूमिहार गृहों की सं 71 है| कुल पुरुष मतदाता 353 और महिला मतदाता 296 हैं|

गुलजाना का इतिहास

5. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, “गुलजाना” एक उर्दू शव्द है जिसका अर्थ है ‘फूल कि तरह प्यारा” तथा गुलजाना का एक और अर्थ है “पुष्प-जनित”(Born out of flowers)| पुराने सर्वे नक़्शे में “गुलजाना” का नाम “गुल्जना” भी देखा जा सकता है जिसका अर्थ “पुष्प-जनित” ही है| गुलजाना के कुछ घरों और बाध-बधार के कुछ नामों से भी भी पता चलता है कि इस गाँव में मुस्लिम आबादी थी, उदाहरणार्थ –‘साईं घर’,“रोज़ा पर’’ आदि| गाँव से सटे पईन के पूरब और रोज़ा पर से सटे पश्चिमोत्तर के खाली गड्ढे में मुस्लिम कब्रिस्तान के लक्षण पाए गए हैं जो इस बात को सिद्ध करने के लिए काफी हैं कि गुलजाना में मुस्लिम आबादी थी| आगे आने वाले कुछ सन्दर्भों से भी इस गाँव में मुस्लिम आबादी सिद्ध होती है|


मुस्लिम आबादी का ह्रास
जिन्नाह का प्रभाव

6. तीस के दशक से ही भारतीय स्वतंत्रता की उत्तरोत्तर बढ़ती आगमन ध्वनि, तदोपर मुहम्मद अली जिन्नाह का भारतीय मुसलमानों को स्वतंत्र भारत के परिप्रेक्ष में भयाक्रांत करना तथा कुछ मुसलमानों का सिर्फ अपने बिरादरी में रहने की इच्छा जैसे कुछ ऐसे सवाल थे जिससे कुछ मुसलमान गांवों से अपनी ज़मीं-जायदाद समेट कर या तो मुस्लिम बहुल गांवों में रहने चले गए या सरो-सामान बांधे अवश्यम्भावी पाकिस्तान को रुख किये बेसब्री से इंतज़ार करने लगे| गुलजाना भी इस सिद्धांत का अपवाद नहीं था| यहाँ के मुसलमान भी खरामा-खरामा अपनी जायदाद राज़ी-खुशी से समेट कर हरे भरे मैदान (Greener Pastures) के रुख हो लिए| हाँ, यह अलग चिंतन का विषय है की क्या वे आज पाकिस्तान या बंगलादेश में अपनी हिन्दुस्तानी बिरादरी के बनिस्पत ज्यादा स्वन्त्रत और खुशहाल हैं? खैर, मैं इसका निर्णय भविष्य के कंधे पर छोड़ कर यह कहना चाहता हूँ कि कभी मुस्लिम-बहुल रहे गुलजाना में भी अब दूसरे बाकी बचे एवं उपस्थापित हिंदुओं को बसने और ज़मीन खरीदने का उचित मौका मिला| गुलजाना से मुसलमानों की विदाई बहुत शांति एवं सौहर्द्रपूर्ण माहौल में हुई सी लगती है जो की पीछे आने वाले उदाहरणों से स्पष्ट होता है|

सिन्दानी की ज़मीन

7. सिन्दानी जैसे मुस्लिम बहुल गांवों से भी अपनी जायदाद गुलजाना के भूमिहारों को बेच कर मुसलमानों का प्रयाण दो बातें सिद्ध करती हैं| एक तो यह कि उन्होंने भवनपुर, मुस्सी और पूरा के भूमिहारों के मुकाबले गुलजाना के भूमिहारों को ज़मीनें बेचना पसंद किया| यह सिर्फ तभी संभव है जब गुलजाना में हिंदू-मुस्लिम सम्बन्ध बहुत स्नेहपूर्ण रहा हो| दूसरा यह कि उन गांवों में भूमिहार पहले से बसे हों और ज़मीन कि भूख और ज़रूरत उन्हें गुलजाना के मुकाबले कम हो|

मुगलकालीन स्थिति

8. सबसे पुराने दो भूमिहार वंशों यथा सोनभद्र 1(सोवरन सिंह) तथा सोनभद्र 2(मर्दन सिंह) के 9 पुश्तों का इतिहास तथा भारद्वाज 1(राजाराम सिंह) के 7 पुश्तों का इतिहास यह जाहिर करता है कि गुलजाना में भूमिहारों की आबादी कम से कम 200 वर्षों से ज्यादा समय से कायम है जो कि 1780 - 1800 ईस्वी पूर्व से है| इसका अर्थ यह हुआ कि वह समय मुग़ल साम्रज्य के अवसान तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के अभ्युदय या अंग्रेजी राज्य के सूर्योदय का था|

9. मुगलकालीन क्रूर, कठोर और अमानवीय लगान एवं कर संग्रह प्रणाली से उनके भोग-विलास और अनुत्पादक जीवन शैली का खर्च बमुश्किल पूरा होता था तथा उसके बदले कोई सिंचाई एवं कृषि संबंधी सहूलियत नहीं थी | एक ओर जहाँ हिंदू विरोधी “डोला प्रथा” लागू थी वहीं कर अदायगी न करने की सूरत में जबरन धर्म परिवर्तन किया जाता था | ये ऐसे कारण थे जिसने समकालीन भूमिहार राजाओं को इस समस्या के समाधान के लिए बाध्य किया|



गुलजाना ग्राम में भूमिहारों के बसने की पृष्ठभूमि

10. महाराजा कुमार गोपाल शरण नारायण सिंह के पूर्वज सुंदर सिंह को पहली बार दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह ने बंगाल और बिहार के सूबेदार अली वर्दी खान की मदद के एवज में 1793 में ‘राजा’ की पदवी, अता की| (हालाँ की टिकारी राज की स्थापना राजा सुंदर सिंह के पिता धीर सिंह ने की थी, लेकिन उन्हें ‘राजा’ की औपचारिक रूप से सरकारी पदवी नहीं मिली थी)| राजा सुंदर सिंह के दत्तक पुत्र बुनियाद सिंह को कासिम अली द्वारा डुबा कर हत्या करने के बाद सुंदर सिंह के मन में मुसलमानों के प्रति अविश्वास की भावना घर कर गयी जिसके चलते उन्होंने अपने राज्य को सुरक्षित और मजबूत बनाने की योजना बनायीं|

11. गुलजाना की भौगोलिक स्थिति पर गौर करने पर पता चलता है कि इसके सटे बुढ़नदी के पूरब सभी गाँव, यथा सिन्दानी, बेलाढ़ी लछ्मीपुर, कादिरपुर आदि मुस्लिम बहुल गाँव हैं| टिकारी राज की सैन्य योजनानुसार गुलजाना ही एक ऐसा प्रमुख गाँव था जिसके पूरब, पश्चिम और दक्षिण में बूढनदी और दरधा नदी जैसा प्राकृतिक अवरोध था जो टिकारी के पूरब से मुसलमानों के हमलों को रोक सकता था| सवाल सिर्फ यह था कि गुलजाना में आबादी का स्वजातीय माहौल कायम किया जाय| इसी मकसद के मद्देनज़र राजा सुंदर सिंह ने यूपी तक के सुदूर प्रान्तों से, तथा और भी जहाँ कहीं भूमिहारों को मुसलमानों द्वारा सताया जा रहा था, वहाँ से निकल कर गुलजाना में बसने को प्रोत्साहित करना शुरू किया|



हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र का अटूट मिश्रण

12. अलग-अलग धार्मिक आस्थाओं के बावजूद गुलजाना में हिंदू-मुस्लिम आबादी परस्पर आदर-सत्कार, सहयोग, एवं आपसी भाईचारे के साथ रह रही थी| इस सम्बन्ध में एक छोटे से वाकये का जिक्र संदार्भातिरेक नहीं होगा| इससे यह स्पष्ट होता है की गुलजाना में हिंदू और मुसलमान किस आपसी प्रेम-बिश्वास और समादर की भावना के साथ रहते थे| बात सन् 1935-36 की है जब गुलजाना से मुसलमानों का प्रस्थान उनके अधिक सुविधा- जनक स्थानों के लिए हो गया था| गया में पृथ्वी सिंह (गुलजाना के कन्हाई सिंह के परपोते –भरद्वाज-2) की साइकिल खराब हो गयी थी| करीब करीब शाम का समय होने को था और उन्हें सुदामा सिंह (जिनका ज़िक्र पहले हो चुका है) के साथ गुलजाना साइकिल से वापस आना था| दोनों एक साइकिल-साज़ के पास गए और जल्दी से मरम्मत करने के लिए कहा| साइकिल मिस्त्री नूर मोहम्मद और गुल मोहम्मद ने कहा कि इसमे देर लगेगी| जब इन दोनों ने बताया कि शाम होने को है और उन्हें गुलजाना जाने में रात हो जायेगी| गुलजाना का नाम सुनते ही दोनों मिस्त्री भाइयों ने सब काम छोड़ कर इनकी साइकिल ठीक कर दी जिस पर खर्च एक रुपये हुआ| जब ये पैसे देने लगे तो नूर मोहम्मद ने पैसे लेने से इनकार कर दिया और कहा कि यह तो खुदा कि नेमत है कि उन्हें अपने हमवतन भाइयों के लिए कुछ करने का मौक़ा मिला| यहाँ यह बताना आवश्यक होगा कि 1935 में एक रुपये में चार लोगों का एक परिवार एक हफ्ता बहुत अच्छा खाना खा सकता था!!! आज के सन्दर्भ (2010) में चार लोगों के एक परिवार को एक हफ्ते के अच्छे खाने के लिए कितना खर्च होगा इसकी कल्पना हम अच्छी तरह कर सकते हैं जहाँ दाल 80/-रु किलो और चावल, आटा और सब्जी 20/-रु किलो बिकते हैं!!! इससे यह पता चलता है कि अगर गुलजाना में मुसलमानों का वास और वहाँ से उनकी बिदाई परस्पर बैमनश्य के माहौल में होती तो नूर और गुल मुहम्मद भाईयों का यह अनूठा, मार्मिक और हृदयस्पर्शी ब्यवहार देखने और सुनने को नहीं मिलता|

गुलजाना की जातीय संरचना

13. गुलजाना में निम्नलिखित जातियां सौहार्दपूर्ण वातावरण में रहती हैं-

• भूमिहार
• कायस्थ
• बढ़ई
• तेली
• यादव
• दुसाध (पासवान)
• मुसहर
• डोम
नोट : यह समझना आवश्यक है कि यद्यपि सरकारी ब्यवस्थानुसार अभी तक जनसंख्या कि गणना जाति आधारित नहीं है, तथापि मेरा यहाँ जातियों का उल्लेख ऐतिहासिक रूप से गुलजाना कि जातीय संरचना का निष्पक्ष वर्णन करना मात्र है| संकलन के दौरान मुझे यह आभास हुआ कि भूमिहारों के अलावा अन्य जातियों के लोगों ने अपने पूर्वजों के इतिहास का कोई भी ब्यौरा नहीं रखा है, अतः चाह कर भी मैं इसका विस्तृत विवरण नहीं दे सकता| इसलिए मेरा प्रयास गुलजाना में सिर्फ भूमिहारों के बसने और उनकी वंशावली का विस्तृत वर्णन करने तक सीमित रह जाता है|




गुलजाना में भूमिहारों का इतिहास

14. गुलजाना में भूमिहारों के बसने का इतिहास करीब-करीब 200 से भी ज्यादा पुराना है| गुलजाना में भूमिहारों कि निम्नलिखित प्रजातियां हैं:-
• सोनभद्र भूमिहार
• भारद्वाज भूमिहार
• अथर्व भूमिहार
• द्रोनटिकार (डोमकटार) भूमिहार

सोनभद्र भूमिहार
15. सोनभद्र भूमिहार के उद्गम कुल-पुरुष ‘वत्स ऋषि’ माने जाते हैं जिनका जिक्र वेदों में भी आता है| इसलिए सोनभद्र भूमिहार का गोत्र वत्स है| गुलजाना ग्राम में सोनभद्र भूमिहार के निम्नलिखित तीन परिवारों का निवास है:-

परिवार कुर्सी/पीढ़ी का इतिहास वंशावली
सोवरण सिंह 9 सोनभद्र 1
मर्दन सिंह 9 सोनभद्र 2
कोमल सिंह 3 सोनभद्र 3


सोनभद्र 1(सोवरण सिंह परिवार)

16. मैं सोनभद्र 1 (सोवरण सिंह) परिवार के सातवीं पीढ़ी में जन्म लेने पर अपने आप को धन्य एवं गौरवान्वित महसूस करता हूँ| अब तो हमसे नीचे भी दो पीढ़ियां इस परिवार के मुकुट में रत्न जोड़ने के लिए आगे आ गयीं है| यह मानते हुए कि अगर सोवरण परिवार में हर पूर्वज को 25 वर्ष कि उम्र में पहला बच्चा लड़का हुआ हो (हालांकि ऐसी बात नहीं भी हो सकती) तो भी सोवरण सिंह का जन्म करीब-करीब 1795 ई. में हुआ होगा| मै पुरुष बाल जन्म पर इसलिए जोर दे रहा हूँ क्योंकि पारम्परिक रूप से वंशावली का लेखा जोखा पुरुष जन्म पर आधारित होता है और बच्चियां विवाहोपरांत पति-कुल का सदस्य हो जाती हैं|





सोवरण परिवार के गुलजाना आगमन की कथा

17. गुलजाना में सोवरण परिवार का पदार्पण आज के औरंगाबाद जिले के केयाल ग्राम (जिसे केयाल-गढ़ भी कहते हैं) से हुआ था| केयाल गाँव की ज़मीन हालांकि बहुत उपजाऊ थी लेकिन पूरी तरह अविश्वसनीय मानसून देवता की दया-दृष्टि पर निर्भर थी| इस कसर को पूरा करने के लिए अस्ताचल गामी मुगलिया सल्तनत के पुछल्ले बादशाहों की क्रूर और अमानवीय कर शोषण प्रणाली की पृष्ठभूमि में ब्रिटिश राज के अग्रदूत ईस्ट इंडिया कंपनी का उत्तरोत्तर बढ़ता दबदबा रेयाया (प्रजा) के नस से खून का आखरी कतरा तक चूसने पर अमादा था| बाढ़, भुखमरी और अकाल की लपलपाती जिह्वा, सरकारी आव्पाशी (सिंचाई) की अनुपलब्धता के साथ मिलकर काश्तकारी को नामुमकिन बना दिया था| इन जानलेवा परिस्थितियों के बावजूद भी “कुछ भी हो लगान देना ही होगा” के परिप्रेक्ष में केयाल से भूमिहारों को ‘ज्यादा हरे-भरे मैदानों’(Greener Pastures) की ओर मुखातिब होने पर मजबूर कर दिया था|

मुगलिया खजाने की लूट

18. आभावों और जठराग्नि की ज्वाला में झुलसते परिवारों के जीवन रक्षार्थ क्षुधा तृप्ति के लिए तथा “बुभुक्षितम् किम् न करोति पापम्” की नैसर्गिक अपरिहार्यता के वशीभूत सोवरण सिंह के पिता और चाचा ने कुछ और लोगों के साथ मिलकर ऊँट की पीठ पर लाद कर ले जाते मुग़ल खजाने से अपनी अत्यावश्यक जरूरत के लिए कुछ रकम छीन लिया| सभी लोग पकड़े गए और उन्हें मुगल कचहरी में पेश किया गया| फरमान ये जारी हुआ की या तो वे इस्लाम मजहब अपनाएं या उनका सर कलम कर दिया जाए| मरता क्या न करता? कुछ सोच विचार कर खतरे की लटकती तलवार से निजात पाने के लिए फ़िलहाल उन्होंने इस्लाम धर्म कबूलना स्वीकार किया क्योंकि ऐसे हर मुजरिम को जिसे धर्म परिवर्तन कराना होता था, अलग रखा जाता था और हरेक 15 दिनों पर ज़ुमा (शुक्रवार) के दिन इस्लाम धर्म कबूल कराया जाता था| इस तरह उन्हें करीब दस-पन्द्रह दिनों का समय मिल गया|

19. इस बीच मौक़ा पाकर वे वहाँ से भागकर रातोंरात केयाल आये और अपने परिवार के और लोगों को पूरी कहानी सुनायी| उन्होंने अपने परिवार को रातोंरात केयाल से पलायन कर टिकारी के राजा सुंदर सिंह के पास जाने का आदेश दिय| मैंने यह पहले ही बताया है कि राजा सुंदर सिंह पहले से ही ऐसे भुक्त- भोगी परिवारों को गुलजाना गाँव में बसाने की फिराक में थे| अपने परिवार को टिकारी जाने के लिए तैयार कर और उन्हें केयाल से विदा कर वे दोनों भाई खुद इस्लाम धर्म-परिवर्तन की ग्लानि से बचने के लिए रात के अन्धेरे में सदा के लिए गुम हो गए और ता-उम्र पकड़े नहीं गए| इस विस्थापित परिवार को मुगलों के सिपाहियों, जासूसों, मुखबिरों और कारिंदों की तेज़, तर्रार और सतर्क नज़रों से सुरक्षित बचा कर केयाल से टिकारी लाने का यह असंभव सा दिखने वाला दुस्तर, दुरूह, खतरनाक पर अत्यंत जबाबदेही भरा कार्य अकेले युवा-तरुण सोवरण जिसने अभी-अभी तुरत बीस-बाईसवें वसंत की तरुनाई देखी थी, के अनभ्यस्त पर मज़बूत कब्धों पर सौंपा गया था|

20. आज हम सोवरण सिंह के जीवित वंशजों का सर उनके इस अदम्य साहस, विवेकपुर्ण दूरदर्शिता, मौके की नजाकत को समझने की विलक्षण शक्ति और विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी जवाबदेही निर्वाह करने की दृढ़ इच्छा-शक्ति के सामने नत-मष्तक हुआ जाता है और हम सब उनके इस हैरत –अंगेज काम पर फूले नहीं समाते| क्या आज हम दुनिया में किसी और के सामने इतना कृतज्ञ, आभारी और ऋणि हो सकते हैं जितना की इस पुरुष-पुराण पूर्वज सोवरण सिंह के सामने? केयाल से टिकारी और टिकारी से गुलजाना की उनकी यह करीब 60 मील (100 कि.मी) कि पैदल, कंटकाकीर्ण, घुप्प काली अँधेरी रातोंरात कि यात्रा और वह भी अपनी माता (हमारी आदि माता), अपनी 18-20 वर्षीया पत्नी और अपने छोटे तीन-चार साल के दुधमुहें बच्चे गनौरी को मुगलिया दुश्मनों कि पैनी और सतर्क नज़रों तथा नापाक इरादों एवं मौसम कि दुरुहता से बचते-बचाते सुरक्षित लाना अपने आप में एक अभूत पूर्ण घटना रही होगी| खैर, किसी किसी तरह वे सुरक्षित पहुँच कर नौ फुट्टा दरवाजे पर दस्तक देने में सफल हो गए| (टिकारी राज के किले के मुख्य महल द्वार की ऊँचाई नौ फीट है जिस से टिकारी राज की ज़मीन की पैमाइश नौ फुट्टा बांस से की जाती है| एक बांस लंबे और एक बांस चौड़े जमीन का एराजी (क्षेत्रफल) एक धुर (81 बर्ग फीट) होता है)| वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपने विस्थापन की पूरी दर्दे दास्तां बयां की जहाँ इस विस्थापित परिवार और दुधमुहें बच्चे की समुचित देख-भाल की गयी| दूसरे दिन उन्हें गुलजाना लाकर रिहायशी और काश्तकारी कुछ ज़मीन देकर बसाया गया और जब तक खुद कुछ आमदनी का जरिया नहीं हुआ तबतक हफ्ता बार टिकारी राज से (सिद्धा) राशन का इन्तजाम भी किया जाने लगा| इस तरह सोवरण परिवार की केयाल से गुलजाना की यात्रा का मंगलमय अवसान हुआ| आज हम सोवरण परिवार जिसकी वर्तमान संख्या 57 तक पहुँच गयी है, अपने इस पूर्वज सोवरण सिंह के प्रति उनके अदम्य साहस एवं अटूट कर्त्तव्य निष्टा पर फूले नहीं समाते| सोवरण परिवार में मैं स्वयं अपने पुत्र, पुत्रियों, पोते और नातियों जिनकी सम्मिलित संख्या 15 तक पहुँच चुकी है, को साथ लेकर पूरी श्रद्धा, प्रेम एवं आदर से कृतज्ञता व्यक्त करने में गौरवान्वित महसूस करता हूँ और यह उम्मीद करता हूँ की हमारी आने वाली पीढ़ियां भी उनके अनुकरणीय साहसिक कार्य के लिए सादर नमन करेंगी और सोवरण परिवार को उन्नति के उच्च से उच्चतर शिखर पर ले जाएँगी|

कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ

21. आज के दिन तक इस सोवरण परिवार ने न सिर्फ अपने बल्कि अपने गाँव गुलजाना और अपने देश की रक्षा तंत्र और सुरक्षा के लिए भी दो कमीशंड ऑफिसर (लेफ्टिनेंट कर्नल) पिता पुत्र द्वय विद्या शर्मा (स्व. साहू सिंह के पौत्र तथा स्व. शिव नंदन शर्मा के पुत्र ) एवं मेरे सुपुत्र वसंत कुमार शर्मा (स्व. साहू सिंह के प्रपौत्र एवं स्व. शिव नंदन सिंह के पौत्र) के रूप में दिए| इसी परिवार ने एक इलेक्ट्रॉनिक एवं टेली-कम्युनिकेशन इंजिनियर अरुण शर्मा (मेरे द्वितीय सुपुत्र) के रूप में दिए हैं जो कि पृथ्वी पर उपग्रह संचार प्रणाली स्थापित करने में एक जवाबदेह सीनिअर मैनेजर के ओहदे पर कार्य-रत हैं| इसके अलावा इस परिवार ने दो आतिथ्य प्रबंधक अमित कुमार (स्व. शिव नंदन सिंह के पौत्र तथा वशिष्ठ नारायण के पुत्र) तथा मनीष कुमार (स्व. ईश्वर सिंह के पौत्र तथा मिथिलेश शर्मा के पुत्र) के रूप में दिए है|

22. इतना ही नहीं, नारी सशक्तिकरण, उत्थान एवं स्वावलंबन में भी इस परिवार की उपलब्धि अभूतपूर्व रही है| एक तरफ जहाँ पूनम शर्मा (स्व. शिव नंदन सिंह की पौत्री तथा ले.कर्नल विद्या शर्मा की सुपुत्री) सुदूर अमेरिका में सूचना तकनिकी के एनिमेशन एवं वेब डिजायनिंग विधा में अपना परचम लहरा रही है वहीँ दूसरी तरफ आरती कुमारी (स्व. शिव नंदन सिंह की पौत्री एवं वशिष्ठ नारायण की सुपुत्री) एमबीए के क्षेत्र में अपना कदम आत्म-विश्वास की मजबूती के साथ बढ़ा चुकी है| मैं इनकी उत्तरोत्तर सफलता एवं मांगलिक कल्याण की कामना करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की भविष्य में भी इस परिवार के मुकुट में नए हीरे जड़ने वालों की कोई कमी नहीं हो| हालांकि प्रतियोगितात्मक ललक का सृजन और विपरीत चुनौतिओं का धैर्य एवं साहस पूर्वक शमन एवं विजय प्राप्ति की इच्छा-शक्ति के विकास की जिम्मेवारी उनके माता-पिता की ही होगी| अपनी असफलता/विफलता का दोष भाग्य और दुर्भाग्य पर मढ़कर हम अपनी जवाबदेही से मुकर नहीं सकते| मैंने सोवरण परिवार की वंशावली ब्लॉग पर भी डालने की कोशिश की लेकिन कुछ तकनिकी कारणों से प्रकाशित नहीं हो सकी| सोवरण परिवार की वंशावली सोनभद्र 1 पर http://guljana.weebly.com के ‘Download’ पर प्रकाशित कर चुका हूँ| पूरे गुलजाना गाँव की वंशावली इसी वेब साईट पर देखी जा सकती है|


सोनभद्र 2

23. मर्दन सिंह के वंशजों का वर्णन सोनभद्र 2 वंशावली पर किया जा रहा है| जब मर्दन सिंह अपने दो पुत्रों के साथ गुलजाना आये तो उनकी उम्र ढलने को आयी थी और उनके पुत्रों की उम्र काफी कम थी और इस तरह इस परिवार को कालांतर में बाबा-गोतिया के नाम से पुकारा जाने लगा| यह परिवार आज के औरंगाबाद जिले के डिलिया गाँव से गुलजाना ग्राम में आया| इस सन्दर्भ में एक बड़ी रोंचक कहानी है| उपरोक्त सोवरण सिंह के पितामह अपने अनुज द्वारा बड़े भाई की टोपी पहनने की एक छोटी सी बात पर नाराज होकर केयाल गाँव को छोड़कर सपरिवार डिलिया चले गए थे| कथा इस तरह है:-

“सोवरण सिंह के दादा जी दो भाई थे| उन दिनों एक बड़ी बाध्यकारी सामाजिक प्रथा यह थी की कोई भी उम्र-दराज सदस्य जब गाँव की सीमा से बाहर किसी दूसरे गाँव या शहर काम से जाता था तो वह अपनी टोपी अवश्य पहन कर जाता था| हरेक उम्र-दराज, इज्जत-मंद आदमी की स्वयं की टोपी हुआ करती थी जो घर/दालान की खूंटियों पर सिलसिलेवार ढंग से टंगी होती थी| अगर कोई दूसरा उस से उम्र में छोटा आदमी उसकी टोपी पहन ले तो इसे बुरा मना जाता था| सोवरण सिंह के दादा को किसी जरुरी काम से गाँव से कहीं बाहर जाना था| उन्होंने देखा की उनकी टोपी खूंटी से नीचे गिरकर गंदी हो गयी है इसलिए वे अपने बड़े भाई की साफ टोपी पहन कर चले गए| जब उनके बड़े भाई घर आये तो उन्होंने अपनी टोपी को अपनी जगह टंगी नहीं देखी| पूछ-ताछ से पता चला की उनके छोटे भाई उनकी टोपी पहन कर कहीं बाहर गए हैं| दूसरे दिन जब छोटे भाई घर लौटे तो बड़े भाई ने अपनी नाराजगी जाहिर की और उनके इस अपराध को अक्षम्य मानते हुए बड़े दुखी मन से केयाल ग्राम से सदा के लिए अपना नाता तोड़ डिलिया को प्रस्थान कर गए| छोटे भाई और ग्राम वासियों का कोई भी अनुनय-विनय उनके कठिन निर्णय को बदल नहीं सका| इसी बीच नीयती के क्रूर झंझावात ने सोवरण परिवार की नौका को केयाल-तट से बहा कर गुलजाना-तट पर ला पटका| कुछ दशकों बाद जब सोवरण सिंह का स्वर्गारोहन हो चुका था तब गुलजाना ग्राम में एक और सोनभद्र परिवार का पदार्पण मर्दन सिंह की अगुआई में डिलिया ग्राम से हुआ| (यह मानने में कोई शंका नहीं होनी चाहिए कि सोनभद्र २ परिवार (मर्दन सिंह परिवार) वही परिवार है जो केयाल से सोवरण सिंह के परिवार से बिछड़ कर डिलिया गया था और वहाँ ठीक से नहीं बसने के कारण गुलजाना आ गया जहाँ विस्थापित परिवारों के बसने कि असीम संभावनाएं थीं क्योंकि डिलिया से बसा बसाया परिवार तो गुलजाना आकर बसने से रहा)|”

24. यही कारण है कि मैंने यह निष्कर्ष निकला कि गुलजाना में सोनभद्र 1 (सोवरण सिंह परिवार) सोनभद्र 2 (मर्दन सिंह परिवार) से पुराना है और इस तरह सबसे पुराना है| (द्रोनटिकार परिवार कि अर्वाचीनता पर व्याख्या संदर्भानुसार बाद में करूँगा)|

सोनभद्र 2 परिवार कि कुछ विशेषताएं
25. भैरों सिंह कि कथा. मर्दन सिंह के कनिष्ठ पुत्र भैरों सिंह की सिर्फ एक पुत्री थीं जिनका विवाह उन्होंने टिकारी थाने के लोदीपुर ग्राम में किया था| चार पुत्रों को छोड़ कर भैरों सिंह कि पुत्री एवं
दामाद किसी महामारी में काल-कवलित हो गए| भैरों सिंह के चारो नातियों कि आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गयी थी| ये चारों नाती लोदीपुर से गुलजाना इस उम्मीद से आ गए कि उनके नाना भैरों सिंह जीवन-यापन में उनकी मदद करेंगे| भैरों सिंह के ये चारों नाती थे – गिरधर सिंह, जीवधर सिंह, बिग्गन सिंह और मनोहर सिंह जिनका वर्णन आगे अथर्व 2 अध्याय में मिलेगा जो स्वयं में एक अनूठी सत्य-कथा है|

26. ऋतू सिंह की कथा- मर्दन सिंह के चार पौत्रों में से एक ऋतू सिंह मानवीय संवेदना, दयालुता और विशाल सुहृदयता के लिए विख्यात थे| उन्होंने गाँव के किसी दुखाप्लावित परिवार/इंसान से मिलकर यथा संभव वैयक्तिक, आर्थिक और सामाजिक सहायता प्रदान करने का कभी कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं दिया| इतिहास का गर्त भी उन्हें ओझल नहीं कर सका और आज भी गाँव के जानकार बुजुर्ग उनके गुणों का बखान करते हैं|

27. बाबा गोतिया अपने सूक्ष्म वित्तीय एवं सम्पत्ति प्रबंधन के लिए भी जाना जाता है| धनोत्पार्जन एवं प्रबंधन के एक-दो गुर इनसे हमेशा ही सीखा जा सकता है| बाबा गोतिया की वंशावली http://guljana.weebly.com के ‘Download’सोनभद्र 2 पर देख सकते हैं|

ग्राम गौरव
28. सोनभद्र 2 परिवार ने गुलजाना को निम्न लिखित कुछ “सर्व प्रथम” व्यक्तित्व देकर कृतार्थ किया है:-
• प्रथम स्नातक – स्व. मथुरा सिंह – मर्दन सिंह के सातवें पायदान पर (स्व.शिव नारायण सिंह के पुत्र) |
• प्रथम राजपत्रित पदाधिकारी - स्व. डा. शत्रुघ्न प्र. सिन्हा - (B.V.Sc) - स्व. क्षत्रपति सिंह के सुपुत्र - मर्दन सिंह के सातवें पायदान पर|
• प्रथम भा.प्र.से.(Allied)-अरविन्द कुमार - डा. शत्रुघ्न प्र.सिन्हा के सुपुत्र |
• स्व.राम चंदर सिंह के पौत्र – मुनेश्वर शर्मा के सुपुत्र अभिषेक कुमार – Software Engineer.
• त्रितीय IITian – नितिन कुमार – स्व.क्षत्रपति सिंह के प्रपौत्र- स्व. ज्ञानदत्त सिंह के पौत्र एवं अनुरंजन शर्मा के सुपुत्र|
• इसके अलावा स्व.विष्णुपद सिंह के पौत्र तथा सत्येंद्र शर्मा के सुपुत्र मृत्युंजय शर्मा ने अभी-अभी BIT मेसरा से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है|

सोनभद्र 3 (कोमल सिंह)

29. यह एक ऐसा सोनभद्र परिवार है जिसकी कोमल सिंह वंशावली में सिर्फ चार पीढ़ियों का ही इतिहास शामिल है| स्व. कोमल सिंह, उनके पुत्र स्व. दीनानाथ सिंह उनके सुपुत्र श्री गौरी शंकर सिंह और उनकी तीन पुत्रियां ही सोनभद्र 3 परिवार को पूर्ण करते हैं| यद्यपि संख्या की दृष्टि से यह परिवार बहुत ही छोटा है तथापि सरलता, मानवता और ईमानदारी की दृष्टि से इस परिवार को सदा याद किया जायगा| किसी भी होली आदि संगीतमय सांस्कृतिक आयोजन में श्री गौरी शंकर सिंह का ढोलक वादन हमेशा याद किया जायेगा| यह हम लोगों का सौभाग्य है कि वे अभी हमारे बीच सही सलामत मौजूद हैं| इनकी वारिस तीन पुत्रियों में से कोई गुलजाना का स्थाई निवासी बनेगी यह कहा नहीं जा सकता|

भारद्वाज भूमिहार
30. भारद्वाज या भरद्वाजी जैसा कि बोलचाल कि भाषा में उन्हें कहा जाता है, अपनी उत्पत्ति ऋषि भरद्वाज से जोड़ते हैं और इस तरह उनका गोत्र “भारद्वाज”है| भारद्वाज भूमिहार मे श्री सुदामा सिंह जिनके बारे में मैं पहले ही बता चुका हूँ, गाँव के सबसे वयोवृद्ध पुरुष हैं, जिनकी उम्र करीब 94 वर्ष हो चुकी है| उन्होंनें ही मुझे भारद्वाज 1, 3 और 4 के बारे में विस्तार से बताया|

31. गुलजाना में निम्नलिखित चार भारद्वाज परिवार थे लेकिन आज पूरा बुलक सिंह परिवार (भारद्वाज 4) और भारद्वाज 3 के तीन में से 2 शाखाएं कालकवलित हो चुकी हैं फिर भी ऐतिहासिक महत्व कि दृष्टि से उनका पूर्ण वर्णन किया गया है| पूरे भारद्वाज भूमिहार परिवार को निम्नलिखित चार वंशावलियों में वर्णित किया जा रहा है:-

परिवार कुर्सी/पीढ़ी का इतिहास वंशावली
राजाराम सिंह 7 भारद्वाज 1
तेजा सिंह 7 भारद्वाज 2
रामाधीन सिंह 2 भारद्वाज 3
बुलक सिंह 2 भारद्वाज 4



राजाराम सिंह परिवार

32. यह परिवार उत्तर प्रदेश से विस्थापित होकर टिकारी राज की मदद से गुलजाना ग्राम में बसाया गया| इसमें भी टिकारी राज की मंशा दरधा (बुढ़ नदी) के पश्चिम टिकारी राज का दृढ़ीकरण ही रही थी| आज के दिन इस परिवार की संख्या 33 है| इस परिवार के बसने की स्थानीय स्थिति के कारण इसे “पइन पर” कहा जाता है| इनकी वंशावली भारद्वाज 1 http://guljana.weebly.com के ‘Download’ पर देखी जा सकती है|

ग्राम गौरव
33. आज की तारीख में इस परिवार ने गुलजाना ग्राम को पांच इन्जिनियर (अभियंता) और तीन ऍम.बी.ए दिए हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं:-
• अवधेश शर्मा– स्व.राम विलास सिंह के सुपुत्र.
• धनञ्जय कुमार-श्री बालेश्वर शर्मा के सुपुत्र.
• संजय कुमार-श्री बालेश्वर शर्मा के सुपुत्र.
• विजय भरद्वाज-श्री सुरेश शर्मा के सुपुत्र.
• अजय शर्मा-श्री अवध सिंह के सुपुत्र.
• ऍम.बी.ए.के क्षेत्र में श्री ब्रिज नंदन शर्मा के सुपुत्र, श्री प्रमोद शर्मा की सुपुत्री (गुलजाना की पहली लड़की) तथा श्री चित्तरंजन शर्मा के पुत्र राजीव कुमार शामिल हैं|




तेजा सिंह परिवार (भारद्वाज 2)

34. यह परिवार एक से ज्यादा मामलों में विख्यात, कुख्यात, तथा स्मरणीय रहा है जिसकी वंशावली http://guljana.weebly.com के ‘Download’ भारद्वाज 2 पर दे चुका हूँ| जहाँ तक इसकी ख्याति का सवाल है इस परिवार ने अंगरेजों के ज़माने में स्व. बाल गोविन्द सिंह (तेजा सिंह के पौत्र, कन्हाई सिंह के पुत्र) तथा स्व. व्रह्मदेवसिंह (तेजा सिंह के प्रपौत्र, झरी सिंह के पौत्र) के रूप में गुलजाना गांव को दो मैंट्रीकुलेट्स दिए थे| बाल गोविन्द सिंह ने एक सभ्य औसत जीवन यापन किया| इनके वंश में आज ब्रज भूषण शर्मा और उनके भाईयों का परिवार है| व्रह्मदेव सिंह परिस्थिति वश नशे का शिकार होकर दो पुत्रों (पारस नाथ सिंह तथा केशव प्र. सिंह) के जन्म के बाद घर छोड़कर कहीं और चले गए| झरी सिंह के वंशजों ने अमीरी से गरीबी और गरीबी से अमीरी (Riches to Rags and Rags to Riches) की यात्रा चक्र पूर्ण कर एक अत्युत्तम उर्ध्वोंनत्ति और पुनरुत्थान का उदाहरण चरितार्थ किया है|


पारिवारिक कलह

35. तेजा सिंह के पौत्र तथा कन्हाई सिंह के ज्येष्ठ पुत्र शिव गोविन्द सिंह को लोग मुख़्तार साहब कहा कहते थे| इन्होंने ज़मींदारी हासिल की| रेयाया से लगन वसूलना और मुग़ल दरबार/अँगरेज़ बहादुर के खजाने में जमा करवाना ही ज़मींदारों का मुख्य ब्यवसाय, कर्त्तव्य और आमदनी का जरिया था| कहा तो यहाँ तक जाता है कि ज़मींदारी की खुमारी में मुख़्तार साहब ने अपने बड़े बेटे रघुनंदन सिंह उर्फ बड़े बाबू (निःसंतान) की मिलीभगत से अपने सहोदर भाई बाल गोविन्द सिंह तथा अपने चचेरे भाइयों रुपमंगल सिंह और नान्हू सिंह की संपत्ति की जिला जज की डिक्री को हाई कोर्ट में अपील कर येन केन प्रकारेण नीलाम करा कर खुद खरीद कर सम्पत्ति से बेदखल कर गांव बदर (ग्राम निष्कासित) कर दिया| महिलाएं सपरिवार अपने मैके चली गईं| शनैः शनैः उनकी आर्थिक स्थिति में सुधर होने लगी और एक दिन वे पुनः गुलजाना वापस आ गए और आज उनका परिवार धन धान्य संपन्न है और मुख़्तार साहब का परिवार जिनकी तूती बोलती थी, भूत कालीन परंपरा का आवरण ओढ़े गुमनामी के अँधेरे में सिमता चला जा रहा है| भाग्य-चक्र इसी तरह चलता है| दूसरी ओर व्रह्मदेव सिंह के पौत्र एवं पारस नाथ सिंह के चारों पुत्र न केवल कामयाबी के उच्च से उच्चत्तर बुलंदियों को छू रहे हैं बल्कि अपने चचरे भाइयों कि यथा संभव मदद भी कर रहे हैं|





रामाधीन सिंह परिवार (भारद्वाज 3)

36. इस परिवार की तीन शाखाओं में से दो गुलजाना से विलुप्त हो चुकी है| रामाधीन सिंह की दो वंश शाखाएं अर्थात रामौतार सिंह और कैलाश सिंह का वंश समाप्त हो चुका है| रामौतार सिंह के बेटे मथुरा सिंह अविवाहित एवं राजशेखर सिंह युवावस्था में मृत्यु के कारण निःसंतान रहे और उनके भांजे निमसर से भुनेश्वर सिंह (बिस्नोवा भूमिहार) उत्तराधिकारी बने| कैलाश सिंह के दोनों बेटे अर्जुन और बलि सिंह भी अविवाहित ही मरे और उनकी बची खुची सम्पत्ति उनके भांजे को मिली जो गुलजाना नहीं रहते| सिर्फ मुखी सिंह के दो बेटों (शिवपति सिंह और मुसाफिर सिंह) में शिवपति सिंह का ही विवाह हो सका जिनका वंश कायम है और जिसे http://guljana.weebly.com पर download भारद्वाज 3 पर देखा जा सकता है| रामाधीन परिवार की आश्चर्यजनक बात यह है कि यह परिवार सिर्फ चार पीढ़ी पुरानी है लेकिन अंतिम पायदान के उत्तराधिकारी सदस्य (भुनेश्वर सिंह) को अपने नाना के पिता का नाम भी मालूम नहीं है| हालाँकि यह सच्चाई नहीं हो सकती, फिर भी लोगों को ऐसा प्रतीत हो भी सकता है कि उन्हें सिर्फ संपत्ति लेने भर का स्वार्थ ही सिद्ध करना था !!!


बुलक सिंह परिवार (भारद्वाज 4)

37. यह परिवार भी तीन पीढ़ियों का परिवार है| चौथी पीढ़ी में अमरेन्द्र शर्मा (राम वृक्ष सिंह के नाती) इक्किल गांव से भागिनमान उत्तराधिकारी बने और सभी बाहरी उत्तराधिकारियों कि तरह उन्हें भी अपने नाना से तीन सीढ़ी ऊपर के लोगों के बारे में कुछ भी मालूम नहीं और यह भी मालूम नहीं कि उनके नाना कहाँ से गुलजाना आए थे|

अथरब परिवार
38. उद्गम. अथरब शब्द अथर्व का अपभ्रंश है| अथरब अपना उद्गम ऋषि अथर्व से मानते हैं लेकिन उनका गोत्र कौण्डिन्य है| इसका मतलब यह हुआ कि ऋषि कौण्डिन्य ने अथर्व के वंशज होते हुए भी अपने कुल पुरुष (ऋषि अथर्व) के स्तित्व को नकारते हुए अपनी वंशावली आरंभ की| गुलजाना में अथरब भूमिहार के निम्नलिखित परिवार हैं:-

परिवार कुर्सी/पीढ़ी का इतिहास वंशावली
सनेही सिंह 7 अथरब 1
बुलक सिंह 4 अथरब 1A
गिरधर भ्रातागण 5 अथरब 2
झंखुरी सिंह 5 अथरब 3A
दुर्गा सिंह 5 अथरब 3B
भागवत सिंह 5 अथरब 3C




39. गुलजाना में अथरब भूमिहार निम्नलिखित तीन गांवों से आए हैं :-
• संडा विस्थापित परिवार
• लोदीपुर विस्थापित परिवार
• परशुरामपुर विस्थापित परिवार

संडा विस्थापित परिवार

40. संडा गांव से गुलजाना अथरब भूमिहार के दो परिवार आए – सनेही सिंह परिवार (अथरब 1) और बुलक सिंह परिवार (अथरब 1A)| सनेही सिंह परिवार इनमे सबसे पुराना (सात पीढ़ियों का) है| चूँकि संडा गांव गुलजाना से सिर्फ 5-6 कि.मी. दूर है इसलिए इन दोनों परिवारों का संडा से पलायन के पीछे या तो इनकी गरीबी हो सकती है या गंभीर पारिवारिक कलह या फिर कोई अकथनीय घटना| हालांकि संडा से गुलजाना आने से गरीबी उन्मूलन कैसे हो सकता है यह संदेह का विषय है| फिर भी यह परिवार राजीव कुमार के रूप में(स्व.यदुनंदन मिश्र के पौत्र एवं वैदेही शर्मा के सुपुत्र) होटल प्रवंधन क्षेत्र में एक स्नातक देकर गांव का नाम अंग्रजों के देश इंग्लैंड में भी रौशन कर रहा है| बुलक सिंह का परिवार भी चार सीढ़ी पहले ही संडा से अकथनीय कारणवश गुलजाना आया| इस परिवार ने भी अनैरका (अमेरिका) सिंह के पुत्र रघुवंश शर्मा के रूप में एक अभियंता और सुबंश शर्मा के रूप में एक ओवरसीयर गांव को देकर मान बढ़ाया|

लोदीपुर-विस्थापित परिवार

41. सोनभद्र 2 (बाबा गोतिया) के बारे में लिखते समय यह पहले ही बता चुका हूँ कि स्व.मर्दन सिंह के द्वितीय पुत्र स्व. भैरो सिंह कि सिर्फ एक बेटी थीं जिनका विवाह टिकारी के पास लोदीपुर ग्राम में अथरब परिवार में हुआ था| उनके चार नाती थे| माता-पिता के स्वर्गवास के बाद और कतिपय अव्यक्त कारणों से लोदीपुर ग्राम में इन नातियों का जीवन दूभर हो गया था| अपने नाना भैरो सिंह के दिलाशे और भरोसे पर ये चारों नाती रोजी-रोटी की तलाश में अपने ननिहाल गुलजाना आ गए अतः यह परिवार बाबा गोतिया के भागिनमान हुए| ये चारों नाती थे – गिरधर सिंह, मनोहर सिंह, बिग्गन सिंह और जीवधर सिंह| नाना भैरो सिंह ने इनको स्थापित होने में बटाई अदि पर ज़मीन देकर यथा संभव मदद की लेकिन अपने नाना से भी इनकी नहीं बनी| शायद अपने नाना से इन्हें कुछ ज्यादा ही अपेक्षा थी| अंततः ये चारों भाई फिर रोजी-रोटी की तलाश में गुलजाना छोड़कर खिज़रसराय थाने के उचौली गांव में चले गए और अपने को स्थापित करने का प्रयास किया| पता नहीं क्या बात थी, यहाँ भी ये चारों भाई अपने परिवार को स्थायित्व देने में असफल रहे| घूम फिर कर ये चारों भाई पुनः गुलजाना वापस आ गए|

42. विपरीत परिस्थितियों में जीतने की जिजीविषा. इस बार यह परिवार कुछ खास ही इच्छा-शक्ति के साथ गुलजाना लौटा था| ‘कुछ भी हो, निश्चय कर अपनी जीत करूँ’ के नारे के साथ ये चारों भाई जीवन संग्राम में पिल पड़े| ज़मीन-जायदाद थी नहीं, बटइया-चौठईया पर कम कर के ये अपना जीवन-यापन करने लगे| गरीबी की इस विकट परिस्थिति में चार में से सिर्फ दो सबसे बड़े और सबसे छोटे भाइयों (गिरधर और जीवधर सिंह) का ही विवाह हो सका| मनोहर और बिग्गन सिंह कुंआरे रह गए| ज्येष्ठ की दुपहरी में एक दिन जब गिरिधर सिंह भवनपुर स्कूल के सड़क पर पीपल के नीचे बैठ कर अपने सुनहरे भविष्य का दिवा-स्वप्न देख रहे थे, ठीक उसी समय भवनपुर के एक सज्जन जिनका नाम बालक सिंह था मनो इनके सपने को मूर्त रूप देने के लिए आ पहुंचे| जब उन्होंने पीपल के नीचे बैठे गिरधर सिंह से इनकी उदासी का कारण पूछा तो इनके सब्र का बांध टूट गया और वे फफक पड़े और अपनी तंग हाली का पूरा हल बयां कर दी| उदारमना बालक सिंह का बाल-मन द्रवित हो गया और उन्होंने इनको इस विपदा से उबारने के लिए व्रह्म स्थान का साढ़े सात बीघे का अपना एक प्लाट मात्र 56/-रुपये में देने का प्रस्ताव रख दिया| गिरधर सिंह ने इसके लिए कुछ समय माँगा ताकि पैसों का इन्तजाम कर सकें| घर आकार भाइयों से राय-मशवरा करने के बाद अपने घर की पूरी चल-अचल संपत्ति बेच कर कुल 28/- रु ही जमा कर सके| भवनपुर बालक सिंह से मिलकर उन्होंने 56/-रु जमा करने में अपने असमर्थता जाहिर की| स्व. बालक सिंह इतने दयालु थे की 28/-लेकर ही उन्होंने 7.5 बीघे का प्लाट इस विश्वास पर दे दिया की बाकि के 28/-रु. धीरे धीरे उस खेती की आमदनी से उन्हें चुका दिया जाय| महानता, सरलता और दूसरे गांव के आदमी पर इस तरह का विश्वास आज के दिन एक राम-राज्यीय आदर्श वाक्य की तरह लगता है|

43. उस दिन से आजतक उस परिवार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा| अपने हाड़-मांस को पसीने में पिघलाकर दिन रात मेहनत कर इस परिवार ने अपना कर्ज चुकाया, अपनी आर्थिक दशा मजबूत की और गांव को पहला एम.ए (अर्थशास्त्र) योग्यता-धारी स्व. भुवनेश्वर सिंह के रूप में दिया| आज यह परिवार खुश हाल है और कोई भी सामाजिक उत्सव/कार्य इस परिवार के सहयोग के बिना अधूरा सा प्रतीत होता है| इस परिवार की वंशावली अथरव -2 http://guljana.weebly.com के Download पेज पर दे चुका हूँ|

परशुरामपुर विस्थापित परिवार (अथरब 3A,B&C)

44. यह परिवार गुलजाना गांव के हिसाब से सबसे बाद में ताजा-ताजा आया हुआ परिवार है क्योंकि गुलजाना में इस परिवार का इतिहास सिर्फ चार पीढ़ी ही पुराना है| ये तीनों परिवार एक ही गांव परशुरामपुर से एक ही समय आए और एक ही खानदान के हैं लेकिन तीन पीढ़ी उपर के अपने मूल पूर्वज का नाम किसी को मालूम नहीं है| इनकी वंशावली http://guljana.weebly.com के Download पेज पर अथरब 3A, B और C के रूप में दे चुका हूँ| इस परिवार ने स्व. रामदेव सिंह के पौत्र एवं स्व. कपिलदेव शर्मा के सुपुत्र रणजीत कुमार के रूप में एक बैंक प्रबंधक देकर गुलजाना को कृतार्थ किया है|


द्रोनटिकार(डोमकटार) भूमिहार

हुसेनी सिंह परिवार – 5 पीढ़ियों का इतिहास

45. गुलजाना ग्राम में द्रोनटिकार भूमिहार जिसे बोलचाल की भाषा में डोमकटार भूमिहार के नाम से भी पुकारते हैं, का सिर्फ एक ही घर हैं | महाराजा टिकारी भी डोमकटार भूमिहार ही थे| डोमकटार भूमिहार भरद्वाज गोत्र के होते हैं| इस परिवार के सबसे छोटे सदस्य ने अभी अभी इसके पांचवें पायदान पर कदम रखा है| किंवदन्ती है कि यह परिवार गुलजाना का सबसे पुराना बसा भूमिहार परिवार है लेकिन इनके पास करीब 70-80 साल पहले के पूर्वजों का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है| गुलजाना के इर्दगिर्द के गांव जैसे कि पूरा, मुस्सी, भोरी और सोवाल आदि के वासी डोमकटार भूमिहार हैं लेकिन गुलजाना में यह परिवार कहाँ से आया वह आज हुसेनी परिवार का कोई भी जीवित सदस्य नहीं जानता| इस सन्दर्भ में एक और बात गौरतलब है कि अगर यह परिवार गुलजाना का सबसे पुराना मूल निवासी है तो इनका इतिहास 200 साल से पुराना और इनके पास नौ-दस पीढ़ियों का ब्यौरा होना चाहिए था क्योंकि 200 साल से ज्यादा पुराना नौ पीढ़ियों का भूमिहार परिवार इस गांव में मौजूद है| अगर यह परिवार इतना पुराना होता तो इसकी वर्तमान पारिवारिक संख्या भी कम से 40-50 के करीब होती, जबकि इस परिवार कि वर्तमान संख्या 8-9 के करीब है, हालांकि आज इस परिवार के कृष्ण देव शर्मा के पितामह के एक भाई गुलजाना से विस्थापित होकर भैंसमारा गांव में जाकर बस गए हैं|

ग्राम-गौरव में योगदान

46. जो कुछ भी हो, इस डोमकटार परिवार ने गुलजाना को पहला इंजीनियर कृष्ण देव शर्मा के रूप में देने का इतिहास कायम किया है| इतना ही नहीं, इनके प्रथम सुपुत्र राकेश शर्मा भी इनके पदचिन्हों पर चलकर पिता-पुत्र की इंजीनियर जोड़ी बनाकर दूसरा इतिहास कायम किया| इनकी वंशावली द्रोनटिकार भूमिहार नाम से http://guljana.weebly.com के Download पेज पर दे चुका हूँ|

उपसंहार

47. यहाँ अब मैं गुलजाना सम्बन्धी भूत और वर्तमान की सूचनाओं और तथ्यों के संकलन, परिमार्जन और प्रस्तुतीकरण के अपने प्रयास को विराम दे रहा हूँ| इनमें कुछ ऐसे भी तथ्य शामिल हैं जिनको अगर वक्त रहते उजागर नहीं किया जाता तो ये वक्त के अँधेरे में विलीन हो जाते| मेरी चिर-पोषित इच्छा थी कि अति साधारण ऐतिहासिक विरासत वाले अपने गांव गुलजाना को अगर अपनी योग्यता से नहीं तो किसी और स्वीकार्य तरीके से विश्व-पटल पर लाकर ही चैन कि साँस लूँ| घर घर जाकर सूचनओं के छोटे-मोटे टूटे धागों को इकट्ठा कर, उसे जोड़ कर, स्वविवेक और सर्व-स्वीकार्य तर्क के आधर पर उसे बुनकर इस लेख के रूप में लाना, मुझ अकेले के लिए मुश्किल था| इस प्रयास में मुझे सर्वश्री सुदामा सिंह, बच्चू सिंह, भजुराम सिंह, महेंद्र शर्मा, कृष्ण देव शर्मा, मुनेश्वर शर्मा, वैदेही शर्मा, दिलीप कुमार तथा जीतेन्द्र कुमार आदि का भरपूर सहयोग मिला जिसके लिए मै इन सबों का आभार प्रकट करता हूँ| http://guljanaavillageingayabihar.blogspot.com/ पर इससे पहले मैंने अंग्रेजी ब्लॉग में गुलजाना के बारे में इन्ही तथ्यों को प्रकाशित किया है| लगता है कि इन्टरनेट-पहुँच वाले लोगों को यह बहुत पसंद आया है, जिसे http://guljana.weebly.com पर लिंक के रूप में देखा जा सकता है| इस हिंदी संस्करण को भी मै http://guljana.weebly.com पर प्रकाशित कर रहा हूँ| अब तो हालत यह है की गूगल पर सिर्फ गुलजाना लिखकर सर्च बटन दबाइए और गुलजाना का पूरा इतिहास आपके सामने होगा| मुझे इस बात कि और भी खुशी है कि इसके देखा-देखी और भी कुछ गाँवों के लोग ऐसा ही करने का प्रयास कर रहे हैं| मैं उनके इस प्रयास के लिए उन्हें अपनी हार्दिक शुभ कामनाएं देता हूँ|

48. इस लेख के माध्यम से मैं गुलजाना के युवकों और आने वाली नई पीढ़ी के नव-युवकों से अपील और आग्रह करना चाहता हूँ कि वे अपनी असीम युवा-शक्ति को पहचानें और उसपर भरोसा कर अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति और आत्म-विश्वास के साथ आने वाली चुनौतियों का सामना करें| इस गांव के इतिहास में ही आपने देखा है कि किस तरह सिर्फ अटूट इच्छा शक्ति के सहारे अशिक्षित तो नहीँ पर निरक्षर से निरक्षर लोगों ने भी गरीबी के दलदल से निकलकर आसमान कि बुलंदियों को छुआ हैं| आप तो जानते ही हैं – “जहाँ चाह है वहाँ राह है”| किसी दूसरे पर अमरलता कि तरह परावलम्बी और पराश्रयी होना मानवीय अवनति की पराकाष्ठा हैं| आपमें वह असीम शक्ति है जो आपको अगर दुर्गुणों में दक्ष कर सकती है तो वही शक्ति उचित दिशा में संचालित होकर आपको उन्नत्ति के उच्च शिखर पर भी ले जा सकती है| आप क्या थे? क्या हैं और आपका वर्तमान कार्य आपको कहाँ ले जायेगा? यह बात सदा अपने दिमाग में गांठ बाँधकर रख लें| अपनी विरासत, विकासोन्मुख परंपरा और संस्कारों का ख्याल रखकर आप अपनी शक्ति को पहचानें और उसका समुचित उपयोग कर उच्च से उच्चतम शिखर पर पहुंचें| आपके लिए यही हमारी ईश्वर से प्रार्थना है| मै जहाँ भी रहूँ, न रहूँ, या जिस रूप में भी रहूँ, आपकी उन्नत्ति हमें कुछ न कुछ खुशी अवश्य देगी| ईश्वर आपको सदा सदबुद्धि और सफलता दे| चूँकि यह प्रस्तुति ग्राम वासियों द्वारा दिए सूचनाओं पर आधारित है और कुछ महत्वपूर्ण तथ्य छूट जाने की संभावना हो सकती है जिसके लिए मुझे ई. मेल/फोन कर अपना बहुमूल्य सुझाव देकर कृतार्थ करें| और हाँ, मैं हिंदी भाषा के अपने अल्प ज्ञान और व्याकरण की अशुद्धियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ|


ले.कर्नल विद्या शर्मा, (से.नि.)
Email - vidyashar@gmail.com
(Mob-09693812578, 09304497009, 09470053198)

Wednesday, January 20, 2010



Pursuant to the fervant desires and concerns expressed by some ardent enthusiasts, I am publishing a resonably more detailed house markings of Guljana map. The aim is still a compromise between cluttering up the impressions and soothing up the hurt egoes of some concerned reader. Hope it comes to the reasonably desired expectations of you all.
Sincerely,
(Lt Col Vidya Sharma,(Retd).

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Pursuant to the fervant desires and concerns expressed by some ardent enthusiasts, I am publishing a resonably more detailed house markings of Guljana map. The aim is still a compromise between cluttering up the impressions and soothing up the hurt egoes. Hope it comes to the reasonably desired expectations of you all.


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(Lt Col Vidya Sharma,(Retd).