Saturday, October 20, 2018

स्तन कर (मलयालम में मुलाक्करम/मूला-करम) Breast Tax.


स्तन कर (मलयालम में मुलाक्करम/मूला-करम) Breast Tax.

सामाजिक विकास की कथा कंटकाकीर्ण इतिहास के पथरीले रास्ते पर संघर्षपूर्ण  अभियान की लोमहर्षक यात्रा रही है| इस विकास यात्रा में सफल वही रहा है जिसने हर स्थिति में अपने स्तित्व की रक्षा की है| सर्व शक्तिमान का स्तित्व (Survival of the fittest) कमजोर और निर्बल पर अपना एकाधिकार स्थापित कर अपना शासनतन्त्र कायम करता आया है| इसीलिए कोई भी सम्वैधानिक शून्यता की स्थिति में प्राचीन काल के नृप को ईश्वर का प्रतिनिधि मान लिया जाता था जिससे नृप कोई गलती नहीं कर सकता (King can do no wrong) की अवधारणा सर्वमान्य हो चुकी थी| राजाज्ञा के विरुद्ध कोई विकल्प नहीं था|

ज्यादा दूर की बात नहीं, हाल की 19वीं सदी में भी कुछ ऐसी क्रूर एवं अमानवीय परम्पराएँ प्रचलित थीं जिसे आज मात्र 100-150 वर्ष बाद ही विश्वास करने में संशय होता है लेकिन ऐतिहासिक सच्चाई से मुंह भी मोड़ा नहीं जा सकता|

बात 1859 की है| केरल के त्रावणकोर में उत्तम थिरूनल मार्तण्ड वर्मा द्वितीय (1846 -1860) का राज था| तत्कालीन त्रावणकोर में एक अति निंदनीय प्रथा व्याप्त थी| दलित, अछूत, अवर्ण एवं शूद्र महिलाओं को अपना स्तन ढकने की राजकीय मनाही थी| उनके लिए खुले समाज में  ऊर्ध्व वस्त्र पहनने की मनाही थी|  अगर कोई महिला खुले समाज में अपना वक्ष ढक कर निकलना चाहे तो उसे स्तन कर देना पड़ता था जो राजकोष में जमा होता था| स्तन कर को मलयालम में ‘मुलाक्करम’ कहा जाता था| स्तन कर की रकम का निर्धारण  महिलाओं के स्तन के आकार के हिसाब से तय होता था| स्तन के विकास के साथ ही स्तन कर लगा दिया जाता था| खुले समाज में इनके  स्तनों का नहीं ढकना उच्च जाति के सवर्णों के प्रति  प्रतिष्ठा प्रदर्शन का सूचक  था| नायर जाति की औरतों को नम्बूदरी ब्राह्मणों के सामने स्तन वस्त्रहीन करके रखना पड़ता था, नम्बूदरी ब्राह्मण स्त्रियाँ  देवताओं की मूर्तियों के सामने वस्त्रहीन स्तन रखती थीं| और भी नीची जाति के नाडार (शनार) महिलाओं को स्तन ढकने पर पूरा प्रतिबंध था| इतना ही नहीं, इन महिलाओं के लिए आभूषन पहनने पर और इनके मर्दों को मूंछ रखने पर भी टैक्स लगता था|

काले कानून के इस सन्दर्भ में चेरथला गाँव की एझावा जाति की एक गरीब अछूत कन्या नान्गेली स्तन कर देने में न तो समर्थ थी और ना हीं स्तन कर देना स्वीकार करती थी| इस तरह वह अपना वक्ष सदा ढक कर रखती थी| दिन-रात  स्थानीय कर संग्राहकों (प्रवथियार) का हुजूम उसके घर के आगे चक्कर लगाता रहता था| स्तन कर देने के लिए तरह-तरह से उसे तंग किया जाता था| इस तरह उसका जीवन दूभर हो गया|
इस तरह तंग और लाचार होकर नांगेली ने स्तन कर का विरोध कर दिया| न तो वह कर देती और ना हीं वक्ष को नंगा रखती| स्तन कर वसूलने के लिए अंततः त्रावणकोर रियासत का टैक्स कलेक्टर आ पहुंचा|
लाचार होकर नांगेली घर में गयी और धार-दार हथियार से अपना दोनों उरोज काटकर केले के पत्ते पर रखकर उसने रियासत के टैक्स कलेक्टर को दे दिए और ज्यादा रक्त बहाव के कारण अपनी दहलीज़ पर ही गिर कर उसने दम तोड़ दिए| इस घटना को देखकर टैक्स कलेक्टर जान प्राण की परवाह किये बगैर बेतहाशा भाग खड़ा हुआ| नान्गेली का पति चिरुकंदन इस दुःख को बर्दाश्त नहीं कर सका और उसकी चिता में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर दी| मानव इतिहास में पुरुष सती होने का यह पहला और शायद अंतिम उदाहरण है| यह सनसनीखेज घटना जंगल की आग की तरह पूरी रियासत में फ़ैल गयी| सैंकड़ो  लोगों की विद्रोह श्रृंखला (चन्नार विद्रोह आदि) फूट पड़ी जिसके चलते इस क्रूर अमानवीय कुरीति का खात्मा 1959 में तत्सामयिक मद्रास के गवर्नर के हस्तक्षेप से समाप्त हुआ| नांगेली के इस बलिदान के कारण वह  स्थल मुलाचीपरम्बू (स्तन वाली औरत का स्थान) के नाम से प्रसिद्ध हो गया| नान्गेली का नाम इतिहास के पन्नों में बहादुरी के साथ अपनी स्मिता की रक्षा और अमानुषिक कुरीति के उन्मूलन के लिए सदा अमिट हो गया|
BBC इस पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रही है| इसे देखकर नकलची हिन्दुस्तानी इतिहासकार भी इसे केरल के सरकारी लिखित दस्तावेज में सम्मिलित करने के प्रयास में हैं|